व्यास पीठ
- Mahendra Vyas
- 25 मई 2020
- 2 मिनट पठन
हे धर्मानुरागी सज्जन वृन्द आज एक विशेष बात की और आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा । वर्तमान समय में स्थान स्थान पर धार्मिक शास्त्रीय कथाओं, भागवत आदि का आयोजन वृहद स्तर पर किया जा रहा है जहाँ असंख्य श्रोतागण इन कथाओं का श्रवणानंद लेने पधारते हैं। इन कथा पांडालों में व्यासपीठ पर विभिन्न रूपों में कथावाचक अवतरित होते हैं, जो अपने रूप सौंदर्य एवं वैभव प्रदर्शन से जनसाधारण को मंत्रमुग्ध कर देने में समर्थ होते है। परंतु कभी-कभार उनके कथन, कथाएँ, कथा प्रसंग एवं गायन वादन की शैली एवं आचरण को हमारी सहज बुद्धि स्वीकार नहीं कर पाती है जिससे मन खिन्नता एवं विक्षोभ से भर उठता है। तो आइए मनन करते है कि व्यासपीठ पर बैठने के अधिकारी कौन है। इसी संदर्भ में शास्त्रोक्त प्रसंग है....
विरक्तो वैष्णवो विप्रो वेदशास्त्र विशुद्धिकृत।
दृष्टांत कुशलो धीरे वक्ता कार्योऽतिनिःस्पृहः।।
अनेकधर्मविभ्रान्ताः स्त्रैणाःपाखण्डवादिनः। शुकशास्त्रकथोच्चारे त्याज्यास्ते यदि पण्डिताः॥
(श्रीपद्मपुराणे उत्तरखण्डे श्रीमद्भागवत माहात्म्ये श्रवणविधिकथनं नाम षष्ठोऽध्यायः॥)
प्रथमलक्षण - वक्ता विरक्त हो। (संसार से अथवा मन से)
द्वितीयलक्षण - वैष्णव हो। (वाह्य दृष्टि से अथवा आतंरिक दृष्टि से)
तृतीयलक्षण - विप्र हो। (अत्रि संहिता १४० देखे)
चतुर्थलक्षण - वेद शास्त्रों का शुद्ध ज्ञाता हो।
पञ्चमलक्षण - दृष्टांत (शास्त्रीय) देने में कुशल हो (अर्थात् ग्रन्थ की कथा में छिपे रहस्य को समझाने हेतु दिए गए छोटे दृष्टांत जो प्रसंगान्तर प्रतीत न हो उनको सरल, सहज, सुगम बनाकर ऐसे समझाए जो सहज बुद्धि जनों को भी समझ में आ जाए।)
षष्ठं लक्षण - धीर हो अर्थात् धैर्यवान हो।
सप्तम लक्षण - अतिनिःस्पृही हो। (लोभी-लालची न हो, कथा की दक्षिणा तय न करे, मन धन में न हो, व्यास गद्दी को भीख का कटोरा किसी भी प्रकार से न बनाये । कई कथावाचक व्यासपीठ से ही धनी यजमानों के दान दक्षिणा की घोषणा कर उनका अहं पुष्ट करते देखे गए हैं। अर्थात व्यक्तिगत जीवन में लोभ की प्रवृत्ति न हो एवं त्यागी हो)
अष्टमलक्षण - अनेक धर्मों में जिसका चित्त भ्रमित न हो, धार्मिक रूप से उनका विश्वास अपने ही धर्म, शास्त्रादि में दृढ़ हो।
नवम लक्षण - स्त्री लोलुप न हो तथा 'पुरुष' ही हो।
दशम लक्षण - पाखंडी न हो अर्थात् 'उच्चारण' तथा आचरण में यथासंभव भेद न हो। मन कर्म वचन से शुद्ध हो।
हमारे शास्त्र ही हैं, जो हमें बताते हैं कि पवित्रतम व्यासपीठ का सच्चा अधिकारी कौन अथवा कैसा होना चाहिये।
अगर किसी कथावाचक में उपर्युक्त प्रमुख १० लक्षणों में से एक भी लक्षण कम है तो उसे व्यासपीठ पर बैठकर इसकी मर्यादा को खण्डित नहीं करना चाहिये। यदि शास्त्र अनुसार कोई कथावाचक उपर्युक्त गुणों से युक्त होकर व्यासपीठ को ग्रहण करता है तो उसके द्वारा दिए गए उपदेश ही धर्म सम्मत होते है और उनका प्रभाव श्रोताओं पर नि:संदेह होता है।
॥ज्ञानं भारः क्रिया विना।
बिना आचरण ज्ञान केवल भार के समान है।
इन लक्षणों के विरुद्ध व्यक्ति द्वारा यदि आप व्यास पीठ से कोई भी कथा, प्रवचन सुनेंगे वह आपके जीवन को दिगभ्रमित ही करेगी । सुलक्षण विरुद्ध जब कोई व्यक्ति व्यास पीठ पर बैठता है तव वह व्यासपीठ नही होती वह एक रंगमंच मात्र है, जिस मंच से कलाकार, गायक, नर्तक , सूत्रधार आदि का कला प्रदर्शन एवं श्रोताओं का मनोरंजन मात्र है।
अचारसंहिता को लागू करने, रखने के लिए भी लिए कोई तंत्र, व्यवस्था होनी चाहिए। अगर है तो मुझे मालूम नहीं जी।